भारत का गौरवशाली अतीत व विज्ञान

  • Dr. G. R. Chohan

Abstract

प्रस्तावना जिज्ञासा खोज तक पहुँचाती है। जब हम वेद, उपनिषद, ब्राम्हण, मरूच्चलो भूरचला 'स्वभावतो यतो।, विचित्रावतवस्तु शक्त्यः।। कृष्टिशक्तिश्च मही तयायत् खस्थं, कुरू स्वाभिमुखं स्वशक्तया। आकृष्यते ततृपततीव भाति समेसमन्तात् क्व पतत्वियं खे ।। आरण्यक, पुराण, महाभारत, रामायण आदि भारत का प्राचीन साहित्य पढ़ते हैं। तो उसमें वर्णित कुछ घटनाएँ वैज्ञानिक विकास का आभास देती हैं। जैसे उपनिषद् में वर्णित घटना कि उपमन्यु की नेत्र ज्योति जाती है तो अश्विनी कुमार उसे पुन: ज्योति देते हैं। शाण्डिली के पति की मृत्यु पर अनुसूया उसे पुनः जीवित करती है । च्यवन ऋषि का वार्धक्य अश्विनी कुमार दूर करते हैं। रावण द्वारा विभिन्न भौतिक शक्तियों पर नियंत्रण, त्रिपुरासुर के तीन नगर जमीन आसमान व जल पर गतिमान होते थे, पौलुमी आकाशस्य नगरवासी असुरो से अर्जुन का युद्ध, विभिन्न देवताओं के अंतरिक्षयान, दिव्यास्त्रो का वर्णन, रामायण में इच्छानुसार चलने वाला पुष्पक विमान आदि पढ़ते हैं। तो चित्र एक विकसित सभ्यता का उभरता हैं। परंतु फिर प्रश्न उठता है, क्या ये मात्र कथा-कहानी या कवि कल्पना हैं। क्योंकि यदि ऐसा हुआ था तो उसकी तकनीक क्या थी? इस तकनीक को बताने वाले ग्रंथ है क्या? यह जानने का प्रयत्न करने में सबसे बड़ी बाधा है, जो जानकारी है वह संस्कृत में है और आज भी हजारों लाखों पाडुलिपियाँ यत्र-तत्र विखरी पड़ी हैं।
How to Cite
Dr. G. R. Chohan. (1). भारत का गौरवशाली अतीत व विज्ञान. BIMS International Research Journal of Management and Commerce , 8(2), 01-04. Retrieved from https://bimsirjmc.co.in/index.php/bims/article/view/58
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